MUSHAK AUR SWAMI KI HINDI KAHANI
प्राचीन समय की बात है, एक छोटा सा शहर था जिसे “राघवपुर” कहा जाता था। इस शहर के पास एक विशाल और प्राचीन शिव मंदिर था। इस मंदिर की देखभाल एक महान संत “स्वामी रामानंद” किया करते थे, जो एक तपस्वी जीवन जीते थे। वह रोज़ शहर में जाकर भिक्षा मांगते, और जो कुछ भी मिलता, उसे अपने लिए रखते और शेष को गरीबों और जरूरतमंदों में बाँट देते थे। इन गरीब मजदूरों का एक काम मंदिर की सफाई करना और उसे सजाना भी था, जिससे मंदिर हमेशा स्वच्छ और सुशोभित रहता था।
स्वामी जी जिस भोजन को गरीबों में बांटते थे, उसे वे एक बड़े कटोरे में रखते थे। लेकिन एक दिन उन्होंने देखा कि उनके कटोरे में रखा भोजन गायब हो जाता है। यह घटना रोज़ होने लगी। स्वामी जी ने ध्यान दिया कि एक चूहा, जो मंदिर में ही रहता था, रोज़ उनके कटोरे में से भोजन चुराता था। यह चूहा बड़ा चालाक और तेज था। MUSHAK AUR SWAMI KI HINDI KAHANI
स्वामी रामानंद ने चूहे को रोकने की कई कोशिशें कीं। उन्होंने कटोरे को ऊंचाई पर रख दिया ताकि चूहा वहां तक न पहुंच सके। उन्होंने छड़ी से चूहे को डराने की भी कोशिश की, लेकिन वह किसी न किसी तरह कटोरे तक पहुँच ही जाता था और भोजन चुरा लेता था। यह समस्या दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही थी, और स्वामी जी परेशान हो गए थे।
एक दिन, एक महान साधु “महात्मा ज्ञानेश्वर” मंदिर में दर्शन करने आए। लेकिन जब वह मंदिर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि स्वामी रामानंद का ध्यान उन पर नहीं है और वह चूहे को छड़ी से मारने की कोशिश कर रहे हैं। यह देख महात्मा ज्ञानेश्वर क्रोधित हो गए और बोले, “स्वामी जी, आप मुझसे बात करने के बजाय एक चूहे के पीछे भाग रहे हैं? मुझे यह आपका व्यवहार अपमानजनक लगता है। मैं फिर कभी इस मंदिर में नहीं आऊंगा।” MUSHAK AUR SWAMI KI HINDI KAHANI
स्वामी रामानंद ने तुरंत महात्मा ज्ञानेश्वर से माफी मांगी और उन्हें चूहे से जुड़ी अपनी समस्या बताई। उन्होंने कहा, “महाराज, यह चूहा अत्यधिक चालाक है। वह किसी भी बिल्ली या बंदर को मात दे सकता है, जब बात मेरे कटोरे से भोजन चुराने की हो। मैंने हर उपाय किया, लेकिन वह हर बार भोजन चुरा ही लेता है।”
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